मन पर पड़ी गांठों से आप पर बोझ बढ़ता है, इन्हें खोलकर आजाद हो जाएं
रस्सी पर पड़ी गाठें मन पर पड़ी गांठों के समान है. ऐसी कितनी गांठों का बोझ आप रोज उठाते हैं. जैसे हम रस्सी की गांठें खोल सकते हैं, वैसे ही हम मनुष्य की समस्याएं भी हल कर सकते हैं.
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