तुम जैसे हो, बस वैसे ही संतुष्ट हो जाओ: ओशो
तुम जहां हो, वहीं से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी. अब तुम बैठे मूलाधार में और सहस्रार की कल्पना करोगे, तो सब झूठ हो जाएगा.
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